
तो भई, ये रही कुछ एक बातें-घटनाएँ जिनके होने पर दिमाग बस एक ही बात आती है “अभी लगाऊं जोर से एक” :
1. ये निर्लज्ज प्राणी, हमारे देश में बड़ी ही आसानी से खोजा जा सकता है. आप सीढ़ियों से नीचे उतर रहे हों या सुबह-सुबह बगीचे में टहल रहे हों या सड़क पर अपने वाहन से सफर कर रहे हों....ये विशिस्ट प्रकार का मनुष्य अपने घृणित कर्म के चिन्ह दीवारों और सड़कों पर थूकते हुए दिखाई पड़ ही जाएगा. जब भी देखता हूँ, मन करता है पटक के मारूं और वहीं झाड़ू-पोंछा भी कराऊं. समझ नही आता, कोई व्यक्ति सौंदर्य-बोध विहीन कैसे हो सकता. अरे भाई, तुम्हारा अपना देश है, तुम्हारे घर का ही
एक बड़ा स्वरुप है....इसको साफ़ रखने में इतना शरमाओगे तो कैसे काम चलेगा!
एक बड़ा स्वरुप है....इसको साफ़ रखने में इतना शरमाओगे तो कैसे काम चलेगा!
2. ये प्राणी भी सडको पर ही पाया जाता है. आँख बंद कर मोबाइल पर बात करते रोड पर चलना इनकी एक पहचान होती.
a. इस प्रकार के पुरुष जानबूझ कर ट्रैफिक के नियम तोड़ने में अत्यंत कुशल होते हैं. नियमों को तोडना अकेला जन्मसिद्ध अधिकार होता है इन महापुरुषों के लिए.
b. इस प्रकार की स्त्रियां अनोखी ही होती हैं....वाह वाह जनाब पूछिए मत...ये स्त्रियाँ सडको को क्रोस करने में PhD धारण की हुई होती हैं. इनके लिए दायें-बाएँ का कोई मायने नही होता, सर उठाया--नाक सीधी की और दौड पड़ीं रोड क्रोस करने--इनके चक्कर में दुर्घटना हो तो हो...इन्होने तो पहले ही सरेंडर कर दिया होता है की हमें न देखों ब्रेक का ध्यान रखो!
इन महापुरुषों और महान-स्त्रियों के दर्शन होते ही मन करता है दूँ एक घींच के और पहले दर्जे में ट्रैफिक के नियम पढ़ने भेजूं.
3. यह तीसरे प्रकार का प्राणी जब आप के सबसे करीब होता तब ही सबसे ज्यादा व्यथित करता. इस प्रकार के व्यक्तियों की एक ऊँगली सदेव, बिना थके, नाक के सुराखों के exploration-production में लगे रहती. आप के साथ बात करते, चर्चा करते, यहाँ तक की खाते-पीते भी ये विशिष्ट जनता अपने नाक के प्यार को नही भूलती! इन लोगों को देख कर मन करता इनकी भरती गदहिया-गोल में करा दूँ, पर उस से पहले घींच के एक रपट ज़रूर जडू!
4. इस श्रृंखला का चौथा प्राणी निर्ल्जत्ता के सबसे ऊँचे पायदान का स्वामी होता है. संभवता इस प्रकार के पुरुषों की माँ-बहन नही होती और इनके घर-आस-पड़ोस का वातावरण अत्यंत ही दूषित होता. ये पुरुष आपको गली-चोराहों,पान-चाय की दुकानों, बस-ट्रेन, स्कूल-कॉलेज...लगभग हर जगह ही लड़कियों के साथ छेड-छाड करते दिख जायेंगे. निर्लज्जता के सारे पैमाने ही तोड़ते जाना इनकी ख्वाहिश होती है. आज तक खुद तो मैंने कुछ देखा नही, पर अपनी बहनों एवं महिला-मित्रों से जिस प्रकार की घटनायें सुनने को मिलती....उनको सुन कर तो लगता लाठी-डंडे से सरे चौराहे इनकी खबर लूँ.
5. श्रृंखला के पांचवे पायदान के इन लोगों में तो शर्म-लिहाज की तो कोई बात ही नहीं होती.
c. इस प्रकार के पुरुषों को तो सरे-आम मूत्र-दान (लघुशंका) की अजीब ही बीमारी होती. जहाँ लग गयी, किसीके घर/बगीचे की दीवार खोजी और शुरू हो गए.
d. लिखते हुए अजीब लग रहा, किन्तु जी हाँ ये बिलकुल ही सच है की इस श्रेणी में कुछ स्त्रियां भी शामिल हैं.
हो सकता हैं प्रकति की पुकार कुछ ज्यादा ही तगड़ी हो....पर वयस्कों से इतनी तो अपेक्षा की हा जा सकती के थोडा रोक सकें! अब क्या बोलें, इस प्रकार के लोगों को घींच के मारने में तो शर्म ही आ जाएगी, पर गरियाने की इच्छा ज़रूर ही करती है.
6. मेरी इस लिस्ट का ये छठा हूँ प्राणी बड़ा ही पक्का भारतीय होता....चाए-पान की दुकानें इनका पक्का अड्डा हुआ करती हैं. यहाँ बैठ कर इस typical species के भारतीय पुरुष, राजनीति और प्रायः ही क्रिकेट पर अपना आधा-कचरा ज्ञान बघारते मिल जायेंगे. दया आती है इन महापुरुषों पर जिनके पास फ़ालतू का समय-ही-समय हुआ करता है. ऐसे लोगों को सुन कर मन करता है दूँ एक घींच कर और पूछुं कुछ समाजोपयोगी काम क्यूँ नही करते धरती की बोझों!?
एक बार फिर धन्यवाद ब्लॉग-अड्डा एवं प्रिन्गो का, जिनके आह्वाहन पर मैं ये पोस्ट लिख पाया और गूगल- ट्रांसलिट्रेशन टूल का भी जिसके कारण हिंदी में लिखना संभव हो सका.


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P.S.: This post won BlogAdda's “Whack!! this Wednesday” Contest. |